इस साल का दूसरा ग्रहण, चंद्रमा पर, 4 अप्रैल को भारत के लगभग कई भागों में
दिखेगा। हालांकि एस्ट्रोनॉमी विज्ञान के अनुसार ग्रहण लगना एक खगोलीय घटना
है। सूर्य ,चंद्र और पृथ्वी जब एक सीध में होते हैं और धरती
की परछाई च्रद्र पर पड़े तो चंद्र किरण धूमिल हो जाती है ,इसे
ही ग्रहण कहते हैं। चंद्र ग्रहण केवल पूर्णमासी पर ही लगता है और सूर्य ग्रहण
अमावस पर ही दिखेगा। पौराणिक काल से राहु और केतु को समुद्र मंथन से जोड़ा गया है
और ज्योतिश इन्हें छाया ग्रह मानता है।
ज्योतिश शाश्त्र न केवल हजारों
सालों से न केवल यह बताता आया है कि ग्रहण कब लगेंगे बल्कि यह भी बताता है कि धरती
तथा धरती वासियो एवं अन्य ग्रहों पर भी ऐसी खगोलीय घटना का क्या प्रभाव पड़ता है।
भूकंप आने व प्राकृतिक आपदाओं की भविश्यवाणी भी ऐसी खगोलीय घटनाओं से की
जाती है। जैसे 4 अप्रैल के बाद अप्रत्याषित रुप से
अधिक वर्षा हो सकती है अतः कश्मीर व तटीय प्रदेशो में सावधानी वाले
कदम पहले से ही उठा लेने चाहिए।
एक नजर में
ग्रहण चाल
ग्रहण आरंभ- दोपहर 15.45
खग्रास आरंभ-17.25
ग्रहण मध्य- 17.30
खग्रास समाप्त- 17.36
ग्रहण मोक्ष - 19.15
ग्रहण का सूतक- सूर्योदय से लेकर ग्रहण मोक्ष तक।
ग्रहण काल
विषेश बात यह होगी कि चंद्र
दिखने से पहले ही ग्रहण आरंभ हो चुका होगा कयोंकि इसका स्पर्ष काल दोपहर ही 15.45 पर आरंभ हो जाएगा। खग्रास 17.25 पर प्रारंभ होगा और
ग्रहण का मध्य अर्थात परमग्रास भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार 17.30 पर होगा। ग्रहण 17.36 पर समाप्त भी हो जाएगा। परंतु
ग्रहण का मोक्ष 19.15 पर ही होगा।
एस्ट्रोनॉमी में चंद्र के पेनंबरा
में प्रवेश का समय दोपहर 14.30 होगा जिसे
भारतीय ज्योतिष में चंद्रमालिन्य कहा जाता है। पेनंबरा से बाहर आने का समय
रात्रि 20.31 होगा जिसे भारतीय भाषा में चंद्रकांति निर्मल
हो जाना कहा जाता है। भारतीय पौराणिक परंपरा के अनुसार ग्रहण का सूतक 4 अप्रैल की प्रातः ही सूर्योदय से शुरू हो जाएगा।
सूतक के दौरान कोई भी धार्मिक
कार्य, विषेश मांगलिक कार्य , संसर्ग आदि न करने की सलाह दी गई है। इसका मूल कारण चंदमा के क्षीण होने
पर सोचने समझने की शक्ति क्षीण होना माना गया है जिसमें मानव मस्तिष्क,विषेश
महत्वपूर्ण निर्णय ठीक से नहीं ले पाता। वैज्ञानिक रुप से ग्रहण का प्रभाव
हानिकारक विकीरणें के कारण मनुष्य जीवन पर पड़ने की आषंका रहती है।
ज्योतिशीय दृष्टि से 4 अप्रैल से अत्याधिक अनेपक्षित वर्षा, बाढ़ ,बर्फ, समुद्री तूफान, भू
स्ख्लन तथा कहीं कहीं भूकंप की आषंका रहेगी।
इस बार ग्रहण का खग्रास भारत के
किसी भाग में दृष्य नहीं होगा। उत्तर भारत में भी नहीं दिखेगा जबकि दक्षिण भारत के
निचले राज्यों कर्नाटक, ओडिसा, तथा बंगाल, कोहिमा आदि में ठीक से दिखेगा।
यह ग्रहण आस्ट्रेलिया, उत्तर-पूर्वी अमरीका, दक्षिण अफ्रीका आदि में दर्शनीय
होगा परंतु इंगलैंड, यूरोप, रुस आदि देशो
में नहीं दिखेगा।
कौन सी राशि होगी प्रभावित ? क्या करें दान ?
यह ग्रहण कन्या राशि और हस्त
नक्षत्र में लग रहा है। अतः इस राशि व नक्षत्र वालों के अलावा गर्भवती महिलाओं को
विषेश ध्यान रखना चाहिए। यथाषक्ति जाप , पाठ व दानादि से
इसका अषुभ प्रभाव क्षीण किया जा सकता है। मिथुन, कर्क,
सिंह, व बृष्चिक, राशि
के लिए उत्तम तथा मेश, वृश, सिंह,
कन्या, तुला, धनु ,
मकर, कुंभ व मीन वालों के लिए मध्यम
रहेगा।
ग्रहण समाप्ति पर या अगले
दिन दान करना चाहिए। ओम् नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र जाप करे ।
अन्य राशियों के लिए कैसा रहेगा ग्रहण ?
मेशः चिन्ता व खर्च बढ़ने की
संभावना, गुड़ का दान करें। बृशः व्यर्थ भागदौड़,
दूध का पैकेट दान करें ।मिथुनः लाभ व धार्मिक कामों पर व्यय,हरी मूंग की दाल दान दें। कर्कः प्रगति, प्रोमोषन
वृद्धि , दही का दान करें। सिंहः यात्रा की संभावना, तांबे का बर्तन किसी सुपात्र को दें। कन्याः शारीरिक कष्ट, हरी सब्जी लंगर में दान कर आएं। तुलाः धनहानि, मंदिर
में कपूर दे दें। बृष्चिकः धन लाभ , मिटटी के कुज्जे में पीली खांड भर के दान दें। धनुः संघर्ष
बढ़ेगा, सवा किलो चने की दाल दें। मकरः संतान से परेशानी,
काले उड़द दान करें। कुंभ: दुर्घटना ,यात्रा
में कष्ट,बारह किलो कच्चा कोयला जरुरतमंद को दें।मीनः पत्नी
को कष्ट, मछलियों को आटे व उड़द की गोलियां डालें। तांबे का
पात्र दान करें ।
ग्रहण में क्या करें क्या नहीं ?
सूतक तथा ग्रहण काल में
मूर्ति स्पर्श, अनावश्यक खाना पीना, संसर्ग
आदि से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाएं अधिक श्रम न करें । सामान्य रहें।ग्रहण काल
में चंद्रमा को सीधे न देखा जाए। खुले में खाद्य सामग्री न रखें। संक्रमण व
विकीरणों से बचने के लिए तुलसी का प्रयोग करें। ग्रहण लगने से पहले और दो दिन बाद
तक के संक्रमण काल में कोई शुभकार्य, विवाह ,निर्माण, नए व्यवसाय का आरंभ , सगाई, लंबी अवधि का निवेष, मकान
का सौदा या एडवांस, आंदोलन, धरना-
प्रदर्षन आदि नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके सफल होने में संदेह रहता है।
क्या करें दान?
कन्या राशि वाले लोग 5 अप्रैल, रविवार की प्रातः स्नान करके मंदिर में,
गाय को या मांगने वालों को गुड़, चने की दाल,
चावल और दूध दान कर सकते हैं। इसके अलावा सात अनाज के दान का भी
महत्व है। सात अनाज में शास्त्रानुसार कनक, चावल, मक्की, चने, जौ ,ज्वार तथा बाजरा होने चाहिए। इसमें दालें नहीं होनी चाहिए। जिनकी साढ़ेसाती
चल रही हो जैसे तुला ,बृष्चिक व धनु व राषि वाले जातक अपने
वज़न के बराबर तुलादान कर सकते हैं। या 12 किलो ऐसा अनाज अलग
अलग लिफाफों में डालकर दान दे सकते हैं। कालसर्प दोश के जातक , विषेश जाप, महामृत्युंज्य मंत्र तथा राहू - केतु के
मंत्र जप सकते हैं। चांदी के नाग नागिन षिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं या प्रवाहित कर
सकते हैं।
Article Provided By: श्री मदन गुप्ता सपाटू
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