होलिका दहन पर करें विषेश
उपाय
Astroshine.org परिवार की ओर से होलिका दहन की बहुत शुभकामनाएं। इस त्योहार की पूर्व संध्या पर, होली पर आप के लिए क्या अच्छा है सलाह ले हमारे ज्योतिशाचार्य मदन गुप्ता ‘सपाटू’ द्वारा
सद्मिलन,मित्रता, एकता, द्वेश भाव त्याग कर गले मिलने का रंगारंग पर्व होली, शुक्रवार 6 मार्च, को आ
रहा है। विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोगों को एक सूत्र में बांधने तथा राष्ट्रीय
भावना जागृत करने की दृश्टि से हमारे देष में यह पर्व आरंभ किया गया था ताकि सभी
वर्गों ,
समुदायों के लोग विविध रंगों और उत्साह में रंग कर सारे
गिले षिकवे भूल जाएं और आने वाले नए वर्ष का स्वागत करें।
प्रकृति भी अपने पूर्ण यौवन पर होती है।फाल्गुन का मास नवजीवन का संदेश देता है।
यह उत्सव वसंतागमन तथा अन्न समृद्धि का मेघदूत है। जहां गुझिया की मिठास है, वहीं रंगों की बौछारों से तन मन भी खिल उठते हैं। जहां शुद्ध
प्रेम व स्नेह के प्रतीक, कृश्ण की
रास का अवसर है वहीं होलिका दहन , अच्छाई
की विजय का भी परिचायक भी है। सामूहिक गानों ,रासरंग, उन्मुकतवातावरण
का एक राष्ट्रीय, धार्मिक व
सांस्कृतिक त्योहार है।
होलिका- दहन का
मुहूर्त
गुरुवार 5 मार्च को होलिका दहन का
विषेश शुभ समय सायंकाल 6 बजकर 20मिनट से 8 बजकर 45 मिनट तक होगा । इस अवसर पर विषेश तांत्रिक, मांत्रिक पूजा एवं साधना
का शुभ तथा फलदायी समय ,काल रात्रि 24.34 से लेकर 26.28 तक रहेगा। उसके बाद यह
विषेश सिद्धि के लिए ,रात 3.44 से प्रातः सूर्योदय तक
भी है। रंगों से होली खेलने के लिए शुक्रवार का पूरा दिन शुभ है। इस दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र दोपहर 11.34 तक रहेगा । उसके बाद उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आरंभ हो
जाएगा।
होलिका दहन का
वैज्ञानिक दृश्टिकोण
होली के आयोजन में अग्नि प्रज्जवलित कर वायुमंडल से
संक्रामक रोगाणु दूर करने प्रयास होता है। इस दहन में वातावरणषुद्धि हेतु हवन
सामग्री के अलावा गूलर की लकड़ी,गोबर के उपले, नारियल,अधपके अन्न आदि के अलावा बहुत सी अन्य निरोधात्मक सामग्री
का प्रयोग किया जाता है जिससे आने वाले रोगों के कीटाणु मर जाते हैं।जब लोग 150 डिग्री तापमान वाली होलिका के गिर्द परिक्रमा
करते हैं तो उनमें रोगोत्पादक जीवाणुओं को समाप्त करने की प्रतिरोधात्मक क्षमता
में वृद्धि होती है और वे कई रोगों से बच जाते है।ऐसी दूर दृष्टि भारत के हर पर्व
में विद्यमान है जिसे समझने और समझाने की आवष्यकता है। राष्ट्र भर में एक
साथ एक विषिश्ट रात में होने वाले होलिका दहन, इस सर्दी और गर्मी की ऋतु -संधि में फूटने वाले मलेरिया ,वायरल, फलू और वर्तमान स्वाइन फलू आदि तथा अनेक संक्रामक
रोग-कीटाणुओं के विरुद्ध यह एक धार्मिक सामूहिक अभियान है जैसे सरकार आज पोलियो
अभियान पूरे राष्ट्र में एक खास दिन चलाती
है।
प्राचीन काल में
होली
हिरण्यकष्यप जैसे राक्षस के यहां ,प्रहलाद जैसे भक्तपुत्र का जन्म हुआ।अपने
ही पुत्र को पिता ने जलाने का प्रयास किया। हिरण्यकष्यप की बहन होलिका को वरदान था
कि अग्नि उसे जला नहीं सकती।इसलिए प्रहलाद को उसकी गोद में बिठाया गया। परंतु
सद्वृति वाला ईष्वरनिश्ठ बालक अपनी बुआ की गोद से हंसता खेलता बाहर आ गया और
होलिका भस्म हो गई। तभी से प्रतीकात्मक रुप से इस संस्कृति को उदाहरण के तौर पर
कायम रखा गया है और उत्सव से एक रात्रि पूर्व, होलिका दहन की परंपरा पूरी श्रद्धा व धार्मिक हर्शोल्लास से
मनाई जाती है।
भविष्य पुराण में नारद जी युधिश्ठर से
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सब लोगों को अभयदान देने की बात करते हैं ताकि सारी प्रजा
उल्लासपूर्वक यह पर्व मनाए।।जैमिनी सूत्र में होलिकाधिकरण प्रकरण, इस पर्व की प्राचीनता दर्षाता है। विन्ध्य
प्रदेष में 300 ईसवी पूर्व
का एक षिलालेख पूर्णिमा की रात्रि मनाए जाने वाले उत्सव का उल्लेख है। वात्सयायन के
कामसूत्र में होलाक नाम से इस उत्सव का वर्णन किया है।सातवीं षती के रत्नावली
नाटिका में महाराजा हर्श ने होली का जि़क्र किया है। ग्यारवीं शताब्दी में मुस्लिम
पर्यटक अल्बरुली ने अपने इतिहास में भारत की होली का विषेश उल्लेख किया है।
Article Provided By
ज्योतिशाचार्य मदन गुप्ता ‘सपाटू
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